खनिज–लवणों की कमी से पशुओं में होने वाले रोग एवं निदान
शरीर की समस्त आंतरिक क्रियाओ का समुचित रूप से नियंत्रण एवं नियमन में पोषक तत्वों की महत्वपूर्ण भूमिका है| यह पोषक तत्त्व प्रोटीन, कार्बोहायड्रेट, वसा, जल, विटामिन्स तथा लवण होते है| यह सभी तत्व शरीर की मरम्मत, वृद्धि एवं विकास के लिए आवश्यक होते है| इन सभी पोषक तत्वों में से खनिज लवण का पशुओं के जीवन और स्वास्थ्य में महत्वपूर्ण योगदान है| प्रकृति में लगभग 40 प्रकार के खनिज लवण पाये जाते है| मुख्यतः कैल्शियम, फास्फोरस, पोटेशियम, सोडियम, सल्फर, मेग्निशियम, क्लोरीन, आयरन, मेग्नीज, कोबाल्ट, आयोडीन एवं मोलिब्लेडनम पशुओं के लिए महत्वपूर्ण खनिज लवण है| पशुओ की दैनिक दिनचर्या में इन सभी खनिजों की सुक्ष्म मात्रा शरीर के संचालन के लिये आवश्यक होती है| शरीर में खनिजों को इनकी मात्रा के अनुसार प्रमुख व सुक्ष्म खनिजों में विभाजित किया गया है| प्रमुख खनिजों में कैल्शियम, फास्फोरस, पोटेशियम, सोडियम, सल्फर, मेग्निशियम, क्लोरीन महत्वपूर्ण है| प्रजनन, दुग्ध उत्पादन एवं शरीर के विकास के लिए इन खनिजों का महत्वपूर्ण स्थान है| इन खनिजों की आवश्यकता पशुओं के लिए अधिक मात्रा में होती है| सुक्ष्म खनिज में जिंक, आयरन, कोबाल्ट, कॉपर, आयोडीन, मैग्नीज, मोलिब्लेडनम सेलेनियम, लेड एवं वेनेडियम खनिज शामिल है जिनकी सुक्ष्म मात्रा शरीर में विभिन्न कार्यकलापो के लिये आवश्यक है| पशुओं के स्वास्थ्य के लिये ये खनिज आहार में संतुलित मात्रा में उपलब्ध होने चाहिए|
शरीर में इनकी कमी कई प्रकार के रोग एवं समस्यायें उत्पन्न कर सकती है| इनकी कमी से पशुओं के दुग्ध उत्पादन में कमी, स्वास्थ्य में गिरावट व कमजोरी, प्रजनन संबंधित विकार जैसे पशुओं का बार-बार मद में आना, अधिक आयु हो जाने के बाद भी मद में ना आना तथा गर्भ का न ठहरना इत्यादि तरह की समस्यायें हो सकती है | इसके अलावा पशु अन्य बीमारियों के लिए संवेदनशील हो जाते है| खनिजों की कमी से मुख्यतः होने वाले रोग निम्लिखित है|
दुग्ध ज्वर – यह मुख्यः रूप से अधिक दुग्ध उत्पादन वाली संकर नस्ल की गाय, भैस व बकरी का रोग है| यह रोग पशुओं की गर्भवस्था के अंतिम चरण व प्रसव के बाद देखने को मिलता है| सामान्यतः गाय व भैस इस रोग के लिए चौथे व पांचवे गर्भधारण में अधिक संवेदनशील होते है| कैल्शियम की कमी इस रोग का मुख्य कारण है |
कैल्शियम की कमी कई कारणों से हो सकती है जैसे:-
१. गर्भवस्था के दौरान आहार में अपर्याप्त मात्रा में कैल्शियम
२. फॉस्फोरस की अधिकता
३. कैल्शियम कोलोस्ट्रम के द्वारा शरीर के बाहर निकलना (9 ग्राम /लीटर )|
रोग के लक्षण:-
१. भूख न लगना
२. शरीर के तापमान में गिरावट
३. मांसपेशिओ में कमजोरी
४. पिछले पैर में अकडन
५. दुग्ध उत्पादन में कमी व प्रभावित गायो में सुस्ती जैसे लक्षण देखने को मिलते है |
६. कुछ समय पश्चात् पशु गर्दन को पीछे की ओर मोड़ कर बैठा रहता है | समय पर उचित उपचार न होने से पशु की मृत्यु हो जाती है|
उपचार:-
- . कैल्शियम बोरोग्लुकोनेट का इंजेक्शन इस रोग के निवारण के लिए पशुओ में काफी प्रभावशाली है |
- . इस रोग से बचाव के लिए पशुओ की गर्भावस्था के दौरान कैल्शियम व फॉस्फोरस का संतुलित अनुपात आहार के साथ देना चाहिए|
पोस्टपारचुरींयट हेमोग्लोबिनोयूरिया– यह रोग सामान्यतः अधिक दुग्ध उत्पादन करने वाले पशुओं की नस्ल में दुग्धावस्था के समय देखने को मिलता है | सामान्यतः गाय व भैंस इस रोग के लिए चौथे व पांचवे गर्भधारण में अधिक संवेदनशील होते है| इस रोग को लहू मूतना नाम से भी जाना जाता है |
रोग का कारण :-
यह रोग प्रसव के उपरांत अन्तः द्रव में फॉस्फोरस की कमी हो जाने से होता है इसमें लाल रक्त कणिकाएँ भंगूर होकर टूटने लगती है जिससे ये रुधिर कणिकाएँ पशुओं के मूत्र में मिल जाती है व मूत्र भूरे या गहरा लाल रंग का हो जाता है |
रोग के लक्षण:-
१ . भूख का न लगना
२ . दुग्ध उत्पादन में गिरावट
३ . ह्रदय की धड़कन का बढ़ना
४ . लम्बी व गहरी सांस लेना
५ . रक्ताल्पता
६ . गहरा लाल एवं काले रंग का पेशाब आदि देखने को मिलता है |
उपचार:-
१ . इस रोग के निदान के लिए फॉस्फोरस व कैल्शियम की उचित मात्रा में आहार में दे व रोग के बचाव के लिए सोडियम एसिड फास्फेट नामक दवाई नसों में लगाने से शीघ्र आराम मिलता है |
आस्टियोमलेशिया – यह वयस्क पशुओ की हड्डियों से संबंधित बीमारी है | यह कैल्शियम, फॉस्फोरस तथा विटामिन डी की कमी या इनमें से किसी एक की कमी के कारण होता है | गर्भवस्था व दुग्धावस्था के समय आहार में इन खनिजो की कमी के कारण शरीर की हड्डियों से इनका धीरे– धीरे अवशोषण होने लगता है ताकि शरीर में इनकी संतुलित मात्रा बनी रहे | जिसके फलस्वरूप हड्डियाँ कमजोर व भंगुर हो जाती है |
रोग के लक्षण:-
१ . पशुओ में उत्पादन क्षमता में कमी
२ . लंगडापन
३ . जोड़ो में अकडन जैसे लक्षण देखने को मिलते है|
४ . आस्टियोमलेशिया में ग्याभिन गायो की पेल्विक हड्डियां ग्रसित हो जाती है जिसके कारण पशुओ में डिस्टोकिया हो जाता है |
उपचार:- इस रोग के निदान के लिये पशुओं को संतुलित मात्रा में कैल्शियम, फॉस्फोरस व विटामिन डी देना चाहिए |
पाइका –यह रोग मुख्यतः शरीर में फॉस्फोरस की कमी से होता है | इसमें पशु खाद्य पदार्थ के अलावा अखाद्य पदार्थ जैसे ईट, पत्थर, मिट्टी, मल – मूत्र, कागज, कपडे आदि खाने लगता है | उपचार हेतु संतुलित मात्रा में पशुओं को कैल्शियम व फॉस्फोरस आहार के साथ देना चाहिए |
रिकेट्स- यह मुख्यतः पशुओं के बछड़ो में होने वाला रोग है | यदि आहार में लम्बे समय तक कैल्शियम, फॉस्फोरस व विटामिन डी की न्यूनता हो जाये तो बछड़े इस रोग से ग्रसित हो जाते है | सामान्यतः कैल्शियम और फॉस्फोरस का अनुपात २:1 होता है अगर किसी कारण इनका अनुपात बदल जाता है या इनमें उचित अनुपात का अभाव हो जाता है तो रिकेट्स के लक्षण दिखाई देते है | इस रोग में बछड़ो की अस्थियो का कमजोर हो जाना एवं बाद मे कमजोर हो कर भग्न होना तथा शरीर में वृद्धि का रुकना जैसे लक्षण देखने को मिलते है |
टिटेनी- सामान्यतः यह रोग दो से चार माह की आयु के बछड़ों में कैल्शियम और मैग्नीशियम की न्यूनता से होता है | इस रोग को “होल मिल्क टेटेनी”, घास टेटेनी, हाईपोमैग्नेशिया या लेक्टेशन टेटेनी आदि नामो से भी जाना जाता है | इस रोग की होने की सम्भावना उन क्षेत्रों में अधिक होती है जहाँ बछड़ो को शरद काल में बांध कर रखा जाता है अथवा ठीक प्रकार से आहार नही मिलता है| इस रोग में बछड़ो का अधिक संवेदनशील होना, लगातार कान का हिलना, पैर की मांसपेशियो में कम्पन जैसे लक्षण दिखाई देते है | कभी- कभी बछड़ो में मिर्गी जैसे लक्षण देखने को मिलते है |
गलगंड – बछड़ो में आयोडीन की कमी के कारण गलगंड या घेंघा नामक रोग हो जाता है| जिससे बछड़ो की थायराइड ग्रंथियों का आकार और भर बढ़ जाता है | इसका आघटन प्राय तराई या इसके आस –पास के छेत्रो में अधिक होता है | इन क्षेत्रों के पानी तथा चारे में आयोडीन की कमी पायी जाती है |
संक्षेप – पशुओं के संतुलित आहार में खनिज लवणों का महत्वपूर्ण स्थान है | जो की सामान्य स्वास्थ्य के लिए अति आवश्यक है | तेजी से बढ़ने वाले बछड़ो, ग्याभिन पशुओ व दुग्ध उत्पादन वाली गायो में इन खनिज लवणों की आवश्यकता सामान्य से कई गुना बढ़ जाती है| इन परिस्थितियो में पशुओं को संतुलित आहार के साथ –साथ संतुलित खनिज लवण भी बहुत जरुरी है |
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