पालतू कुत्तो और दुधारू पशुओ में रेबीज रोग का महत्व
रेबीज एक वायरल रोग है जो स्तनधारियों को प्रभावित करता है। अक्सर यह जंगली जानवरों को प्रभावित करता है परन्तु मनुष्य व घरेलु पशु (पशुधन) भी जोखिम पर हैं। यह एक जूनोटिक रोग है जो पशु से मनुष्य एवं पशु से पशु में फैलता है। इसमें रोगी के व्यवहार में बदलाव अधिक उत्तेजना, पागलपन, पक्षघात व मौत हो जाती है। यह विषाणु मनुष्यों और पशुओं के मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी सहित केन्द्रीय तंत्र को प्रभावित करता है। तंत्रिका कोशिकाओं के अधःपतन से कई मांसपेशियों का पक्षाघात हो जाता है। मनुष्य में इसे हाइड्रोफोबिया या जलटांका कहते हैं क्योंकि इस रोग में गले की मांसपेशियों में ऐठन से रोगी पानी नहीं पी पाता है।
रेबीज रोग के मुख्य कारण:
1. कुत्ते के काटने से।
2. लोमड़ी, भेड़िया, सियार बन्दर इत्यादि के काटने से।
3. चूहा, गिलहरी, नेवला , चमगादड़,भेड़-बकरी, सुअर द्वारा भी यह रागे फलै ता हैं क्योंकि रेबीज का विषाणु प्राकृ रूप
से इनके शरीर में पाया जाता हैं। यदि जगं ली जानवर इनका शिकार करते हैं और खा जाते हैं तो ये रोग उनमें फैल जाता है।
4. इस रोग से ग्रस्त गाय, भैंस, भेड़-बकरी, सुअर आदि के मुँह में हाथ डालने से यह रोग फैलता है।
5. यह विषाणु नर्वस टिश्यु, सेलिवरी ग्लेंड से लाइवा में पाए जाते हैं। बहुत कम बार यह लिम्फ, दूध व मूत्र में पाया जाता है।
6. रेबीज ग्रसित पशु के काटने से अधिकतर यह रोग फैलता है। खुले घाव, श्लेष्मा, झिल्ली, आंखें और मुँह विषाणु के लिए
संभव प्रवेश द्वार हैं। सामान्य परिस्थितियों के अन्तर्गत विषाणु हवा के माध्यम से नहीं फैलता है।
लक्षण:
गाय/भैंस में रेबीज के निम्न लक्षण हैं:-
1.हल्का तापमान, अस्वस्थता, भूख का कम लगना व दूध उत्पादन में कमी।
2 .कान का बार-बार कांपना व हिलना।
3. पशु अस्थिर अवस्था में लड़खड़ाया एवं अँधा नजर आता है, पशु अन्य पशुओं या दीवार से टकरा जाता है।
4. मुख की मांसपेशियों के पक्षाघात के कारण पशु मुंह खुला रखता है मानो कोई चीज फंसी हो तथा अधिक लार गिराता
व दांत पीसता है।
5. पशु को कुछ निगलने व पानी पीने में तकलीफ होती है व बिना आवाज रंभाने की कोशिश करता है।
6. स्वर रज्जू में पक्षाघात के कारण मुंह से कर्कश आवाज निकलती है।
7. पशुओं में यौन इच्छा बढ़ जाती है, बार-बार पेशाब करते हैं, गाय व भैंस गर्मी के लक्षण प्रकट करती है जबकि सांड गाय व
भैंस पर चढ़ता है।
8. ये लक्षण १-३ दिन चलते हैं बाद में जल्दी ही तेज पक्षाघात के कारण कुछ ही घंटों में पशु की मौत हो जाती है।
आवश्यक जानकारी रखनाः
1. क्या काटने वाला जानवर पालतू था या जंगली था?
2. वह स्वस्थ था या बिमार था?
3. काटने वाले जानवर को रेबीज के टीके लगे थे या नहीं? यदि लगे थे तो कब?
4. घाव किस प्रकार का है? एवं शरीर के किस भाग पर घाव है?
5. क्या काटने वाला कुत्ता अथबा जानवर काटने के पहचान अगले 21 दिन तक निगरानी के लिए उपलब्ध है? यदि नहीं
तो उसे रेबीज ग्रसित मान कर बचाव के लिए टीकाकरण आरम्भ कर दें।
इलाज:
एक बार यदि रेबीज लक्षण आ जाएँ तो इसका उपचार संभव नहीं है, रोग के लक्षण प्रकट हो जाने पर पशु या मनुष्य की मौत निश्चित है। इसलिए इसकी रोकथाम ही एकमात्र उपाय है।
रेबीज विषय पर ध्यान देने योग्य मुख्य बातें
1. रेबीज एक विषाणु से फैलने वाला रोग है जिसका बचाव टीकाकरण द्वारा ही संभव है।
2. मनुष्य में रेबीज से मृत्यु के कारणों में कुत्ते द्वारा काटे जाने प्रमुख है।
3. मनुष्य में होने वाली 99 प्रतिशत रेबीज, कुत्ते के काटने से फैलती है।
4. रेबीज से निदान संभव है केवल निम्न दो बातों का ध्यान आवश्यक है:
(क). कुत्तों में रेबीज के बचाव का टीकाकरण।
(ख). कुत्तों द्वारा काटे जाने से बचाव।
5. काटने के तुरन्त पश्चात् यदि घाव को साफ पानी व साबुन से अच्छी तरह धो लिया जाए तो यह 50 प्रतिशत तक बचाव कर
सकता है।
6. पालतू कुत्तों एवं छोटे पिल्लो से भी रेबीज हो सकता है, यदि उन्हें रेबीज का टीका नहीं लगवाया गया हो
7. रेबीज़ संक्रमित दुधारू पशुओं का कच्चा दूध पीने से इंसानों एवं बछड़ोको खतरा- ग्रामीण भारत में बसे छोटे
परिवारों के लिए उनके दुधारू पशु आय का प्रमुख स्रोत होते हैं, ऐसे में रेबीज़ जैसी बीमारी खामोशी से इन परिवारों के
आय को गिरावट दे रही है।
8. रोग ग्रस्त पशु की लार में यह विषाणु ज्यादा होता है। रोगी पशु द्वारा दूसरे पशु को काट लेने से अथवा शरीर/
मुख/दांतो/मसूड़ों/जबान में पहले से मौजूद किसी घाव के ऊपर रोगी की लार लग जाने से यह बीमारी फैल जाती है। दूध में
तो लक्षण दिखता नहीं है। लेकिन इंसान जब रेबीज संक्रमित दूध पीता है तो उसमें लक्षण जैसे- जी मिचलाना, उलटी होना
दिखने लगते हैं। ऐसे में तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिए
9. पशुओं में इस बीमारी के बचाव के लिए साल में एक बार एंटी रेबीज का टीकाकारण पशुपालको को कराना चाहिए ताकि
कोई जानवर अगर दुधारु पशु को काटे तो वो मरने से बच सकता है। पशुपालक ऐसे करें बचाव क़ि कुत्ता जिस दिन पशु
को काटे उसी दिन, तीसरे, सातवें, १४ वें और २८ वें दिन पशु का वैक्सीनेशन कराना शुरु कर दे, अगर पशुपालक ऐसा
नहीं करता है तो पशु मर भी सकता है। -जहां पर कुत्ते ने काटा है उस जगह को पानी से धोकर साबुन (लाइफबॉय) लगाएं
क्योंकि उसमें कार्बोलिक एसिड की मात्रा अधिक होती है। पशुचिकित्सालय में तत्काल उपचार कराए। पशुपालक अपने
पशुओं में एंटी रेबीज का वैक्सीनेशन पहले से कराए। काटे हुए पशु को अलग बांधे और उसका खाना-पीना भी अलग कर
दे।
10. दस से पंद्रह मिनट उबले दूध में विषाणु मर जाते है , अगर थन में घाव/कटा हुआ है तो १०-१४ दिन तक पशु के
दूध का उपयोग में न लाना सुरक्षित है1
आवारा पशुओ के कारण भारत में रेबीज का एक विकराल रूप है।